जीरो फूड चिल्ड्रन रिपोर्ट में दावा

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में 12 फरवरी को एक रिसर्च पब्लिश हुई थी। इसमें भारत के 6 से 23 महीने के बच्चों की स्टडी की गई थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में 67 लाख (19.3%) बच्चे जीरो-फूड कैटेगरी में आते हैं। इसका मतलब देश में 67 लाख ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने 24 घंटे में न तो दूध पिया या न ही खाना खाया।

इस स्टडी में दावा किया गया है कि दुनिया के 92 लो और मिडिल इनकम वाले देशों की लिस्ट में भारत तीसरे नंबर पर है, जहां इतने बच्चे जीरो-फूड चिल्ड्रन की कैटेगरी में हैं। इसमें भारत से आगे गिनी (21.8%) और माली (20.5%) आते हैं, जहां हालत भारत से भी ज्यादा खराब है।

केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय ने इस स्टडी को बेबुनियाद बताया। मिनिस्ट्री की ओर से 12 मार्च को कहा गया कि इसमें प्राइमरी रिसर्च नहीं की गई है। इसे सनसनीखेज बनाई गई है। यह स्टडी फेक न्यूज फैलाने के लिए की गई है। इसमें किए गए दावे भ्रम फैला रहे हैं।

मिनिस्ट्री ने स्टडी को गलत क्यों बताया, 3 पॉइंट्स में समझिए

मिनिस्ट्री ने कहा कि रिसर्चर्स ने स्टडी में ऐसे 9 पॉइंट्स गिनाए हैं, जिसके जरिए उन्हें लगता है कि रिसर्च में कुछ कमी रह गई है। इसलिए स्टडी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जीरो फूड चिल्ड्रन की वैसे भी कोई साइंटिफिक डेफिनेशन नहीं है।

मिनिस्ट्री ने कहा स्टडी में फूड के लिए जानवरों का दूध और खाने की ही बात की गई है, लेकिन इसमें मां का दूध पीने वालों का जिक्र नहीं किया गया है। स्टडी में कहा गया है कि 19.3% बच्चों में से 17.8 % ब्रेस्ट फीडिंग करते हैं। अगर ऐसा होता वे भूखे कैसे हुए?

मिनिस्ट्री ने कहा कि देश में आठ करोड़ बच्चों के खान-पान की आंगनवाड़ी सेंटर के जरिए ट्रैकिंग होती है। इसके लिए पोषण ट्रैकर नाम से पोर्टल बना हुआ है। स्टडी में पोषण ट्रैकर का डेटा नहीं लिया गया है। पोषण ट्रैकर के मुताबिक, बहुत कम बच्चे ही भारत में कुपोषित हैं।

सेंट्रल अमेरिका के कोस्टा रिका में हालत सबसे बेहतर

यह स्टडी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यम और विजिटिंग साइंटिस्ट रॉकिल किम ने की है। उन्होंने 92 देशों के 6 से 23 महीने के कुल 2 लाख 76 हजार बच्चों पर रिसर्च की है। इसके लिए उन्होंने 2010 से 2022 तक का डेटा लिया है, अलग-अलग देशों ने पब्लिक किया हुआ है।

प्रोफेसर्स के मुताबिक सभी 92 देशों में 10.4% बच्चे ऐसे है जो जीरो फूड कैटेगरी में आते हैं। सेंट्रल अमेरिका का कोस्टा रिका देश में सबसे कम 0.1% बच्चे ही 24 घंटे में बिना दूध और खाने के रहते हैं। प्रोफेसर्स का मानना है कि 6 से 23 महीने की उम्र बच्चों के डेवलपमेंट के लिए महत्वपूर्ण होती है। इस उम्र में उनको सही खाना मिलना चाहिए। यह दिक्कत सबसे ज्यादा वेस्ट अफ्रीका, सेंट्रल अफ्रीका और भारत में है।

बच्चों के कुपोषण मामले में गुजरात दूसरे नंबर पर, राज्य में 5 साल से कम उम्र के 1.5 लाख बच्चे कुपोषित

गुजरात में कुपोषण की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो 5 वर्ष से कम उम्र के 1.5 लाख बच्चे बौनेपन (ऊंचाई के अनुसार कम वजन) का शिकार हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के अनुसार, गुजरात में 15-49 आयु वर्ग की 1.26 करोड़ महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।