टमाटर से लाल हुआ घरेलू बजट

रंग में लाल, खाने को लजीज बनाने वाले और भारतीय सब्जी की तरी को क्लासिक बनाने वाले टमाटरों की महंगाई हर आदमी की जुबान पर है। देश की अधिकांश जगहों पर सर्दियों के दिनों में टमाटर के भाव 10 से 20 रुपए प्रति किलो तक होते हैं, लेकिन इस साल कुछ शहरों में टमाटर के भाव आसमान छू रहे हैं। कई जगहों पर खुदरा बाज़ार में इसकी क़ीमतें 80 रुपए प्रति किलो से ऊपर हैं। कुछ दक्षिण भारतीय शहरों में तो क़ीमतें 120 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई थीं।कहा जा रहा है कि बारिश के कारण टमाटर की सप्लाई बाधित हुई है जिसके कारण इसकी क़ीमतें बढ़ रही हैं। कर्नाटक का कोलार भी टमाटर के लिए जाना जाता है और देश भर में अधिकतर टमाटर कोलार से ही जाते हैं। या यह कहें कि नासिक और कोलार तो ऐसे हब हैं जो देश में टमाटर की जरूरत को पूरा करते हैं। ऐसे में क्या कारण है कि सोने की खान के लिए मशहूर कोलार में इन दिनों टमाटर सोने के भाव बिक रहा है? हिमाचल प्रदेश में भी पिछले वर्ष सब्जी मंडी सोलन में साढ़े सात लाख टमाटर क्रेट से तीन अरब 75 करोड़ का कारोबार हुआ था, जबकि इस बार साढ़े छह लाख क्रेट से एक अरब 95 करोड़ का ही कारोबार हो सका है। यानी, इस बार पिछले वर्ष की तुलना में कारोबार पौने दो अरब रुपए कम हुआ है। टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है। इसका पुराना नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम मिल है। वर्तमान समय में इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो बिना टमाटर के खाना बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिकी ऐन्डीज़ में हुई।


 मैक्सिको में इसका भोजन के रूप में प्रयोग आरंभ हुआ और अमेरिका के स्पेनिस उपनिवेश से होते हुए विश्वभर में फैल गया। टमाटर का पौधा दक्षिण अमरीका से दक्षिणी यूरोप होता हुआ इंग्लैंड पहुंचा था। 16वीं शताब्दी में इसे अंग्रेज भारत लाए थे। तबसे यह लोगों के जायके को बदल रहा है। स्वादिष्ट टमाटर से जुड़ा अर्थशास्त्र पेचीदा है। टमाटर के दाम कैसे तय होते हैं, कैसे उतार-चढ़ाव आता है? क्या दाम बढ़ने पर किसान का मुनाफा भी बढ़ जाता है, घटने पर घट जाता है? ये सब समझना होगा। मान लें एक किलो टमाटर को प्रोड्यूस करने की लागत आती है करीब तीन रुपए, लेकिन थाली तक जो टमाटर पहुंचता है, उसकी लागत हो जाती है करीब 6 से 7 रुपए। ट्रांसपोर्ट और टमाटर के लॉस (टूट-फूट) को मिलाकर। फिर रिटेलर से लेकर ठेले वाले तक का मार्जिन जुड़ता है। फिर भी टमाटर अगर आपको 9-10 रुपए में भी मिल रहा है, तो मान लीजिए पूरी-पूरी लागत तो निकल ही रही है। लेकिन बीच में ट्रेडर्स लॉबी कुछ फसलों में काफी सक्रिय रहती है। यही वजह है कि टमाटर में ज़रा भी सप्लाई कम हुई तो दाम बहुत ज़्यादा ऊपर-नीचे हो जाते हैं। रिसर्च बताती है कि टमाटर का उत्पादन पांच फीसदी बढ़ता है तो दाम 50 फीसदी गिर जाते हैं। ये स्टॉक मार्केट जैसा है। लेकिन हमारे यहां के सप्लाई चेन में दाम बढ़ने से किसान के पास मुनाफे का बड़ा हिस्सा आता ही नहीं है। सीधे खेत से उपभोक्ता तक फसल की थ्योरी अभी भी अमल में नहीं आ पाई है। इसलिए सब्जी का दाम बढ़ने पर भी किसान के हिस्से में बहुत कम ही मुनाफा आ पाता है। टमाटर की ही बात करें, तो इसकी खेती लागत भी बढ़ी है क्योंकि कीटनाशक का खर्चा काफी बढ़ गया है।


 तमाम पुराने कीड़ों ने पुरानी दवाइयों से प्रतिरोधक क्षमता डेवलप कर ली है। अब वो उससे मरते ही नहीं। किसान को नए किस्म के कीटनाशक लाने पड़ रहे हैं। एक कीटनाशक का दाम तो 550 से 600 रुपए प्रति 60 ग्राम है। सोचिए किसान की लागत कहने को तो लोग 2-3 रुपए प्रति किलो बताते हैं, लेकिन ये सारी लागत जोड़ना भी ज़रूरी है। टमाटर के व्यापार से जुड़ी आर्थिकता बताती है की आमतौर पर टमाटर अच्छा भाव हो, तब भी 300 रुपए प्रति क्रेट बिकता है। एक क्रेट में 25 किलो टमाटर होते हैं। इस समय एक क्रेट टमाटर एक हज़ार रुपए से लेकर 1400 रुपए तक बिक रहे हैं। सर्दियों में कभी टमाटर के दाम इतने ऊंचे नहीं गए हैं। ये समय आते-आते तो दस रुपए प्रति किलो तक टमाटर बिकना मुश्किल हो जाता था, क्योंकि पैदावार बंपर होती थी। इस बार बारिश ने फसल ख़राब कर दी है। मंडी में माल नहीं है। इसलिए मांग बहुत ज़्यादा है। टमाटर की खेती करना आसान नहीं है। लागत बहुत लगानी पड़ती है। एक बीघा खेत में बीस हज़ार रुपए तक की लागत आ जाती है। ऐसे में किसान को दाम न मिले तो भारी नुक़सान होता है। नवंबर के पहले सप्ताह में बारिश होने की वजह से फसलें प्रभावित हुई हैं जिसकी वजह से दाम बढ़े हुए हैं। दाम बढ़ने की एक वजह परिवहन में देरी, डीज़ल के महंगे दामों को भी माना जा रहा है। भारी बारिश की वजह से तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बारिश ने फसलों को ख़राब कर दिया है। इसकी वजह से आपूर्ति प्रभावित हुई है। एक तरफ जहां टमाटर के दाम बढ़ने से उपभोक्ताओं पर मार पड़ रही है, वहीं किसानों ने कुछ राहत की सांस ली है। दरअसल बेमौसम हुई बरसात ने टमाटर की फसल को ख़राब कर दिया था जिससे किसानों को भारी नुक़सान हुआ।


 बंगाल की खाड़ी में कम दबाव के क्षेत्रों के बार-बार बनने या अरब सागर में चक्रवात के कारण नवंबर के पहले सप्ताह से पूर्वोत्तर मानसून के दौरान भारी बारिश के कारण टमाटर की फसल को नुकसान हुआ है, जिससे टमाटर की फसल खराब हो गई और आपूर्ति बाधित हुई। दक्षिण भारत में जबरदस्त बारिश होने से टमाटर को लेकर यह संकट आया है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में टमाटर की खेती वाले इलाके बारिश के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और देरी भी हुई है। आम तौर पर टमाटर की फसल बोने के लगभग दो से तीन महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। ऐसा माना जा रहा है कि अभी तक आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक सहित टमाटर की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में कटाई चल रही है। इसके सप्लाई में आते ही परचून में टमाटर के दाम जायज हो सकते हैं। सरकार ने लोगों की चिंताओं के बीच कहा है कि देश के उत्तरी राज्यों से टमाटर की नई फसल की आवक के साथ दिसंबर से इसके भाव नरम पड़ने की उम्मीद है। टमाटर का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य बेमौसमी बारिश के कारण पिछले वर्ष की तुलना में 63 प्रतिशत बढ़कर 67 रुपए प्रति किलो होने के साथ सरकार का यह बयान आया है। वहीं प्याज के मामले में, खुदरा कीमतें वर्ष 2020 और वर्ष 2019 के स्तर से काफी नीचे आ गई हैं। इस साल नवंबर में आवक 19.62 लाख टन थी, जो एक साल पहले की समान अवधि में 21.32 लाख टन थी। टमाटर की कीमतों में तेज वृद्धि देश भर के घरों के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि आम आदमी का बजट पहले ही महंगाई से बढ़ा है। कुल मिला कर टमाटर की बेलगाम कीमतों ने इस समय आम आदमी का घरेलू बजट बिगाड़ दिया है।


-डा. वरिंदर भाटिया-







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सस्ती होने को तैयार नहीं सब्जी, बजट गड़बड़ाया

मोदीनगर :  बेमौसम की बात तो दूर, मौसमी सब्जियां इन दिनों भी खूब भाव खा रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा लाल टमाटर हो रहा है। इसके भाव में गिरावट आने को तैयार नहीं हैं। गोभी, मटर, मूली, आलू, मैथी पालक जैसी मौसमी सब्जी हर बार सर्दी शुरू होने से पहले ही सस्ती हो जाती थीं, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं है।


हापुड़ रोड स्थित फल एवं सब्जी मंडी के थोक आढ़ती अय्यूब खान का कहना है कि बेमौसम बारिश ने इस बार सब्जी की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। इसीका नतीजा अब लोग भुगत रहे हैं। जानकारों की मानें तो आने वाले एक माह में सब्जियों के भाव में गिरावट आनी मुश्किल है। आसपास से मांग पूरी नहीं होने के कारण कई सब्जियों का आयात बाहर से कराना पड़ रहा है। हालांकि, सब्जियों की बढ़ती कीमत के लिए कुछ लोग बिचौलियों को जिम्मेदार बता रहे हैं।


आलू के उत्पादक मनीष त्यागी ने बताया कि भले ही फुटकर भाव में आम आदमी को आलू 30 रुपये प्रति किलो मिल रहा हो, लेकिन किसान का आलू मंडी में 15-17 रुपये प्रति किलो ही बिक रहा है। बढ़ती महंगाई को लेकर गोविदपुरी की गृहणी पुष्पा शर्मा का कहना है कि इस मौसम में सब्जी हर बार सस्ती हो जाती थी, लेकिन इस बार भाव कम नहीं हो रहे हैं। रसोई में सबसे ज्यादा टमाटर, आलू, प्याज की जरूरत पड़ती है और इनके ही भाव कम नहीं हो रहे हैं। सब्जी- भाव


1-आलू-30


2-टमाटर-80


3-प्याज-50


4-गोभी-50


5-लौकी-40


6-मटर-120


7-शिमला मिर्च-120


8-मैथी-60


9-बैंगन-40


10-गाजर-40


11-मूली- 30


-सभी भाव प्रति किलो के हिसाब से हैं। सब्जियों के भाव मोदीनगर मुरादनगर के प्रमुख दुकानदारों से लिए गए हैं।







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अनाज, सब्जियों के दाम घटने से अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.3 प्रतिशत पर

नई दिल्ली :  अनाज और सब्जियों सहित खाद्य उत्पादों के दाम घटने से खुदरा मुद्रास्फीति अगस्त में मामूली घटकर 5.3 प्रतिशत रह गई। सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। हालांकि, खाद्य तेल के दाम में इस दौरान वृद्धि दर्ज की गई।


यह लगातार तीसरा महीना है जबकि खुदरा मुद्रास्फीति नीचे आई है और रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर के दायरे में बनी हुई है।


उपभोक्ता मूल्यू सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इससे पिछले महीने जुलाई में 5.59 प्रतिशत थी। वहीं एक साल पहले अगस्त में यह 6.69 प्रतिशत पर थी।


राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति अगस्त में 3.11 प्रतिशत रही जो कि इससे पिछले महीने जुलाई में 3.96 प्रतिशत थी वहीं अगस्त, 2020 में यह 9.05 प्रतिशत के उच्चस्तर पर थी।


खुदरा मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 6.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी। अप्रैल में यह 4.23 प्रतिशत थी। उसके बाद से यह लगातार नीचे आ रही है। जून में खुदरा मुद्रास्फीति 6.26 प्रतिशत तथा जुलाई में 5.59 प्रतिशत रही।


रिजर्व बैंक ने अगस्त में अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखा था। केंद्रीय बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पर निर्णय के लिए मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पर गौर करता है।


सरकार ने केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है।


एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों और अनाज एवं उत्पादों के दाम में क्रमश: 11.68 प्रतिशत और 1.42 प्रतिशत घट गई। लेकिन 'तेल एवं वसा' खंड में मूल्यवृद्धि एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 33 प्रतिशत रही।


त्योहारी मौसम के दौरान खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार ने हाल में पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेलों पर मूल सीमा शुल्क घटा दिया है। उद्योग का मानना है कि इससे तेलों के खुदरा दाम चार से पांच रुपये प्रति लीटर घट जाएंगे।


हालांकि, उपभोक्ताओं की जेब पर 'ईंधन और प्रकाश' खंड अब भी भारी बना हुआ है। इस खंड में मुद्रास्फीति 12.95 प्रतिशत रही।


डीबीएस सिंगापुर की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट अनुकूल आधार प्रभाव तथा खाद्य वस्तुओं के दाम घटने की वजह से आई है। उन्होंने कहा कि तेल एवं वसा को छोड़कर अन्य उप खंडों की मुद्रास्फीति घटी है।


रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के 5.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि दूसरी तिमाही में यह 5.9 प्रतिशत, तीसरी में 5.3 प्रतिशत और चौथी में 5.8 प्रतिशत रहेगी। वहीं, अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया।


कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ उपाध्यक्ष उपासना भारद्वाज ने कहा कि मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के अनुमान की तुलना में अधिक अनुकूल और कम रहेगी।


उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के नरम रहने से नीति निर्माताओं को राहत मिलेगी और नीति के सामान्यीकरण की ओर से धीमी रफ्तार से चलने के लिए ज्यादा गुंजाइश होगी।









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