हरिद्वार में कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर थमे वाहन, डायवर्जन के बावजूद हाईवे से शहर तक जाम

कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर्व पर हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लाखों लोग गंगा स्नान के लिए शहर पहुंचे, जिससे दिल्ली-हरिद्वार हाईवे और शहर के मुख्य मार्गों पर लंबा जाम लग गया। वाहनों की लंबी कतारों के बीच हाईवे पर ट्रैफिक रेंगता हुआ चलता रहा। शहर के भीतर भी कई प्रमुख मार्गों पर जाम की स्थिति बनी रही।

बहादराबाद से लेकर शांतिकुंज तक वाहन चालक घंटों जाम में फंसे रहे। शंकराचार्य चौक, रोडीवाला, लालतारो पुल, शिव मूर्ति चौक, बस अड्डा और रेलवे स्टेशन के आसपास सबसे अधिक जाम देखा गया। कई यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी पैदल तय करनी पड़ी।

सुबह से ही गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। हरकी पैड़ी, कुशावर्त घाट, भीमगोड़ा, हरिपुरकलां और कनखल स्थित घाटों पर स्नान और पूजा-अर्चना का दौर पूरे दिन चलता रहा। श्रद्धालुओं ने परिवार की सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना करते हुए गंगा में आस्था की डुबकी लगाई।

जाम की स्थिति से आमजन को खासी परेशानी झेलनी पड़ी। कई जगह वाहन चालक घंटों फंसे रहे, जबकि पैदल यात्रियों को भी भीड़ के बीच मुश्किल से रास्ता बनाना पड़ा।

इस बीच, पुलिस प्रशासन ने यातायात व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मार्गों पर डायवर्जन लागू किया। एसएसपी प्रमेंद्र सिंह डोबाल ने स्वयं हरकी पैड़ी क्षेत्र का निरीक्षण कर सुरक्षा एवं ट्रैफिक व्यवस्था का जायजा लिया। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि श्रद्धालुओं की सुविधा सर्वोच्च प्राथमिकता हो और किसी भी तरह की अव्यवस्था न होने दी जाए।


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ओडिशा में कार्तिक पूर्णिमा की धूम, श्रद्धालुओं ने कागज़ की नाव बहाकर की पूजा-अर्चना

ओडिशा में आज कार्तिक पूर्णिमा का पर्व पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। तड़के सुबह से ही राज्यभर के जलाशयों, नदियों और समुद्र तटों पर ‘बोइता बंदाण’ अनुष्ठान आयोजित किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने पान, सुपारी, फूल और दीयों से सजी हाथों से बनी छोटी कागज़ और केले के तनों की नावें जल में प्रवाहित कीं। इस दौरान नदियों और तालाबों के किनारे आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने सभी घाटों और जलाशयों के आसपास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए विशेष व्यवस्थाएँ की गईं।

श्रद्धालुओं ने पारंपरिक ‘अका मा बोई’ गीत गाते हुए नावों को जल में प्रवाहित किया। यह गीत प्राचीन ओडिया नाविकों की समुद्री यात्राओं के दौरान उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना के रूप में गाया जाता है। इसी बोइता बंदाण उत्सव के साथ कार्तिक माह का समापन होता है। राजधानी भुवनेश्वर में बिंदुसागर सरोवर, कुआखाई और दया नदी सहित कई तालाबों पर हजारों लोग एकत्र हुए। रातभर चलने वाले आतिशबाजी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने पूरे माहौल को उत्सवमय बना दिया।

इस बीच, पुरी में भी लाखों श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा मनाने पहुंचे और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के ‘सोनावेश’ (राजाधिराज वेश) के दर्शन किए। आधी रात से ही समुद्र तट (महोदधि) और पंचतीर्थ तालाबों पर भीड़ उमड़ पड़ी, जहाँ श्रद्धालुओं ने छोटी-छोटी नावें जल में प्रवाहित कीं।

पुरी के ऐतिहासिक नरेंद्र पोखरी में पारंपरिक बोइता बंदाण (नौका उत्सव) मनाने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी। लोगों ने सदियों पुरानी इस परंपरा के तहत नावें जल में प्रवाहित कीं — जो ओडिशा की समृद्ध समुद्री विरासत का प्रतीक है। यह उत्सव न केवल पुरी, कटक या भुवनेश्वर, बल्कि पूरे राज्य में बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया। श्रद्धालुओं ने केले के तनों, कागज़ और थर्माकोल से बनी छोटी नावें जल में प्रवाहित कर प्राचीन समुद्री परंपरा को याद किया।

यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ओडिशा के गौरवशाली समुद्री इतिहास और प्राचीन ओडिया व्यापारियों को श्रद्धांजलि भी है। कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू पंचांग के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय — भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र — का जन्म भी हुआ था। पूरे देश में यह दिन दीप जलाने, मंदिर सजाने और धार्मिक मेलों के आयोजन के साथ मनाया जाता है।

ओडिशा में यह पर्व बोइता बंदाण उत्सव के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है, जो राज्य की समृद्ध समुद्री विरासत, आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं को आज भी जीवंत बनाए हुए है।


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आंध्र प्रदेश के वेंकटेश्वर मंदिर में मची भगदड़, 9 श्रद्धालुओं की मौत

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित काशीबुग्गा वेंकटेश्वर मंदिर में शनिवार को एकादशी के मौके पर मची भगदड़ में 9 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। मृतकों में 8 महिलाएं और एक बच्चा शामिल हैं। हादसे में 25 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनका इलाज नजदीकी अस्पताल में जारी है।

स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, दर्शन के दौरान भारी भीड़ में अचानक धक्का-मुक्की शुरू हो गई, जिससे मंदिर की रेलिंग टूट गई और भगदड़ मच गई। अधिकारियों ने आशंका जताई है कि मृतकों की संख्या बढ़ सकती है। राज्य सरकार ने हादसे की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं।

महिलाएं और बच्चे फंसे, रेलिंग टूटते ही मचा हड़कंप

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में दिख रहा है कि मंदिर की सीढ़ियों पर भारी भीड़ उमड़ी हुई थी। रेलिंग टूटने के बाद लोग एक-दूसरे पर गिर पड़े। कई महिलाएं और बच्चे भीड़ में दब गए। लोग बाहर निकलने के लिए चीखते-चिल्लाते रहे, जबकि कई श्रद्धालु दूसरों के ऊपर चढ़कर बचने की कोशिश करते दिखे।

हादसे के बाद लोगों ने मिलकर घायल महिलाओं और बच्चों को बाहर निकाला। कई श्रद्धालु बेहोश अवस्था में जमीन पर पड़े दिखाई दिए।

गृह मंत्री ने दी जानकारी

आंध्र प्रदेश की गृह मंत्री अनीता ने बताया कि मंदिर में हर सप्ताह करीब 1,500 से 2,000 श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन एकादशी होने के कारण इस बार भीड़ बहुत अधिक थी। उन्होंने कहा कि मंदिर पहली मंजिल पर स्थित है, जहां जाने के लिए करीब 20 सीढ़ियां हैं। भीड़ बढ़ने से धक्का-मुक्की हुई और रेलिंग टूट गई, जिससे यह हादसा हुआ।

उत्तर का तिरुपति कहा जाता है वेंकटेश्वर मंदिर

श्रीकाकुलम का काशीबुग्गा वेंकटेश्वर मंदिर आंध्र प्रदेश के प्रमुख और प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसे “उत्तर का तिरुपति” भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी पूजा-पद्धति तिरुपति बालाजी मंदिर से मिलती-जुलती है। यह मंदिर 11वीं–12वीं सदी के दौरान चोल और चालुक्य शासकों के काल में निर्मित माना जाता है।

हर साल एकादशी, कार्तिक मास और अन्य पर्वों पर यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।


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उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर संपन्न हुआ छठ महापर्व, घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ ही आज छठ महापर्व का समापन हो गया। इसी के साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास भी समाप्त हुआ। मंगलवार सुबह घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी, जहां व्रती महिलाओं ने जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया और संतान की दीर्घायु, परिवार की सुख-समृद्धि तथा मंगलमय जीवन की कामना की। सुबह के समय घाटों का नजारा अत्यंत भव्य और आस्था से परिपूर्ण दिखाई दिया।

छठ महापर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर लिखा, “भगवान सूर्यदेव को प्रातःकालीन अर्घ्य के साथ आज महापर्व छठ का शुभ समापन हुआ। चार दिवसीय इस अनुष्ठान के दौरान छठ पूजा की हमारी भव्य परंपरा के दिव्य दर्शन हुए। समस्त व्रतियों और श्रद्धालुओं सहित पावन पर्व का हिस्सा बने अपने सभी परिवारजनों का हृदय से अभिनंदन! छठी मइया की असीम कृपा से आप सभी का जीवन सदैव आलोकित रहे।”


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इंटरनेट मीडिया पर छाई छठ पूजा, गोरखपुर के घाटों पर जमकर बना रहे रील

गोरखपुर: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा इस बार न सिर्फ घाटों पर बल्कि इंटरनेट मीडिया पर भी छाया हुआ है। शहर के राप्ती नदी, रामगढ़ताल, और अन्य घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने के साथ ही लोग सोशल मीडिया पर अपने अनुभव और भक्ति के पलों को साझा कर रहे हैं।

सुबह और शाम के अर्घ्य के दौरान घाटों पर रील्स और फोटोशूट का अलग ही माहौल देखने को मिला। युवक-युवतियाँ पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे मोबाइल कैमरों से वीडियो बना रहे हैं। कोई सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी के रील बना रहा था तो कोई घाट की सुंदर सजावट को दिखा रहा था।

इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर “#ChhathPuja”, “#GorakhpurChhath” और “#ChhathVibes” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। स्थानीय इन्फ्लुएंसर भी इस मौके को भुनाने में पीछे नहीं हैं — कईयों ने लाइव स्ट्रीमिंग कर हजारों व्यूज बटोर लिए।

वहीं, बुजुर्गों का कहना है कि भले ही अब आस्था डिजिटल हो रही है, पर इसकी मूल भावना — सूर्य उपासना और पवित्रता — आज भी उतनी ही गहरी है। प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा और साफ-सफाई की विशेष व्यवस्था की थी, जिससे श्रद्धालु बिना किसी परेशानी के पूजा कर सकें।





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ओंकारेश्वर मंदिर में शुरू होगी शीतकालीन पूजा, श्रद्धालुओं के लिए खास अवसर

विश्व प्रसिद्ध धाम केदारनाथ के कपाट भाई दूज पर्व यानी 23 अक्‍टूबर को शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। बुधवार को विशेष पूजा अर्चना के बाद केदारबाबा की पंचमुखी डोली को मंदिर में विराजमान किया जाएगा। आगामी छह माह की पूजा अर्चना एवं भोले बाबा के दर्शन ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में होंगे। वहीं बद्री-केदार मंदिर समिति मंदिर के कपाट बंद करने को लेकर तैयारियों में जुट गई है। वहीं कपाट बंद होने से पूर्व मंदिर को 12 कुन्तल फूलों से सजाया गया है।

गत शनिवार को केदारनाथ की पहाडी पर स्थित भैरवनाथ के कपाट बंद होने के बाद अब धाम के कपाट बंद करने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बुधवार को बाबा केदार की पंचमुखी भोग मूर्ति की उत्सव डोली में विराजमान किया जाएगा। इसके बाद 23 अक्टूबर यानी भैयादूज के अवसर पर परंपरा के अनुसार सुबह साढे चार बजे बाबा केदारनाथ को पूजा अर्चना, अभिषेक एवं अारती के साथ भोग लगाया जाएगा। जिसके बाद समाधि पूजा के उपरान्त भगवान छह महीने के लिए समाधि दी जाएगी।

ठीक साढे 8 बजे गर्भगृह के कपाट बंद किए जाएंगे। सभामंडप में स्थापित बाबा केदार की पंचमुखी डोली के सुबह 8:30 बजे मंदिर से बहार आने के बाद पौराणिक विधिविधान के साथ मंदिर के मुख्य कपाट के साथ ही पीछे के कपाट को बंद कर सील किया जाएगा। इसी दिन बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली रात्रि प्रवास के लिए अपने पहले पड़ाव रामपुर पहुंचेगी।

24 अक्टूबर को श्री केदारनाथ भगवान की चल-विग्रह डोली रामपुर से प्रातः प्रस्थान कर फाटा, नारायकोटी होते हुए रात्रि विश्राम के लिए विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी पहुंचेगी। 25 अक्टूबर को चल-विग्रह डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी से प्रस्थान कर अपने शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी। जहां पर शीतकाल में केदार बाबा की छह माह की नित्य पूजाएं संपन्न होंगी। मंदिर के कपाट बंद करने को लेकर बद्री-केदार मंदिर समिति तैयारियों में जुट गई है।

मंदिर समिति के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी वाईएस पुष्पवाण ने बताया कि केदारनाथ के कपाट बंद करने को लेकर मंदिर समिति ने तैयारियां शुरू कर दी है। आगामी 23 अक्टूबर को ठीक 8.30 बजे के मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। जिसके बाद शीतकाल के छह माह तक आेंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में भगवान की नित्य पूजाएं संपन्न होंगी। बताया कि मंदिर को 12 कुन्तल फूलों से सजाया गया है।


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नोटों की गड्डियों से सजा रतलाम का महालक्ष्मी मंदिर, भक्तों को प्रसाद में मिलेगा चढ़ावे का पैसा

दीपोत्सव के अवसर पर इस बार रतलाम शहर के माणकचौक स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर और कालिका माता मंदिर क्षेत्र स्थित श्री महालक्ष्मीनारायण मंदिर को नोटों की गड्डियों से आकर्षक रूप से सजाया गया है। दोनों मंदिरों में भक्तों द्वारा दी गई ₹1, ₹2, ₹5, ₹10, ₹20, ₹50, ₹100, ₹200, ₹500 और ₹5,000 के नोटों की गड्डियों का उपयोग किया गया है।

इस बार दोनों मंदिरों की पूरी सजावट केवल नोटों से की गई है, जिसे दीपोत्सव तक भक्त देख सकेंगे। माणकचौक मंदिर में शनिवार से भक्तों को कुबेर पोटली का वितरण भी शुरू किया गया है।

देशभर में प्रसिद्ध है माणकचौक महालक्ष्मी मंदिर

रतलाम का माणकचौक महालक्ष्मी मंदिर नोटों और आभूषणों से होने वाली सजावट के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। हालांकि इस वर्ष यहां केवल नोटों से ही सजावट की गई है। नकदी चढ़ाने वाले श्रद्धालुओं की ऑनलाइन एंट्री की गई है। भक्तों को ईमेल पर टोकन नंबर दिया गया और राशि जमा करते समय ओटीपी व आधार नंबर भी दर्ज किए गए। पूजा के बाद यह राशि प्रसाद के रूप में भक्तों को लौटाई जाएगी।

आभूषणों की बजाय सिर्फ नोटों से सजा मंदिर

मंदिर के पुजारी अश्विन ने बताया कि इस बार किसी भी प्रकार के आभूषण स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं। भक्त केवल नकद ही चढ़ा रहे हैं। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने एक से लेकर 500 रुपये तक के नोटों की गड्डियां जमा करवाई हैं। सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर में 22 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और माणकचौक थाने से पुलिस जवान भी तैनात किए गए हैं।

पहली बार सजा महालक्ष्मीनारायण मंदिर

माणकचौक मंदिर की तर्ज पर इस बार पहली बार कालिका माता मंदिर क्षेत्र स्थित महालक्ष्मीनारायण मंदिर को भी दीपोत्सव के लिए नोटों से सजाया गया है। यहां भी सैकड़ों श्रद्धालुओं ने अपनी श्रद्धा के रूप में नोटों की गड्डियां अर्पित कीं।

सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम

पुजारी असीम और दीपक व्यास ने बताया कि हर भक्त से आधार कार्ड की प्रति लेकर रसीद दी जा रही है, जिसमें जमा की गई राशि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में चार स्थायी और छह अस्थायी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं ताकि हर गतिविधि की निगरानी की जा सके। सुरक्षा के लिए पुलिस बल भी चौकसी में तैनात है।

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7 दिन में संपूर्ण रामायण की सीख: भाग-4 — किष्किंधाकांड, मित्रता और सहयोग का प्रतीक

किष्किंधाकांड रामायण का वह अध्याय है जो मित्रता, निष्ठा और सहयोग की अमूल्य सीख देता है। इसी कांड में भगवान श्रीराम की भेंट वानरराज सुग्रीव से होती है। दोनों के बीच एक सच्ची मित्रता स्थापित होती है — जहाँ श्रीराम सुग्रीव की सहायता से उसके भाई बाली का वध करते हैं, वहीं सुग्रीव श्रीराम की पत्नी सीता की खोज में अपनी पूरी वानर सेना समर्पित कर देते हैं। इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा मित्र वही होता है जो संकट की घड़ी में साथ खड़ा रहे और धर्म के मार्ग पर अडिग रहे। किष्किंधाकांड यह भी सिखाता है कि एकता, सहयोग और सही संकल्प के बल पर किसी भी असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है।


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केदारनाथ में उमड़ा आस्था का सैलाब, अब तक 16.56 लाख श्रद्धालु पहुंचे

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा इस बार नई ऊंचाइयों को छू रही है। बारिश और बर्फबारी के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ है। आस्था और विश्वास की मिसाल बन चुकी केदारनाथ यात्रा ने इस वर्ष पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। बुधवार तक 16.56 लाख श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं।

धाम के कपाट बंद होने में अभी करीब 15 दिन का समय शेष है, ऐसे में यात्रियों की संख्या में और वृद्धि तय मानी जा रही है। पिछले वर्ष पूरे यात्रा काल में 16,52,076 श्रद्धालु केदारनाथ पहुंचे थे। बुधवार को ही 5614 श्रद्धालुओं ने धाम में पहुंचकर दर्शन किए। जानकारी के अनुसार, केदारनाथ धाम के कपाट 23 अक्टूबर को भैया दूज के अवसर पर बंद किए जाएंगे।

वहीं, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में भी यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सरकार ने चारधाम यात्रा को सुरक्षित और सुचारू बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं। संवेदनशील मार्गों पर जवानों की तैनाती, भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में जेसीबी मशीनों की व्यवस्था और यातायात नियंत्रण के लिए रियल-टाइम निगरानी जैसे कदम उठाए गए हैं।

इस वर्ष 30 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ यात्रा की शुरुआत हुई थी, जबकि दो मई को केदारनाथ और चार मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खोले गए थे। मानसून सीजन में अतिवृष्टि, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं से यात्रा कुछ समय के लिए प्रभावित रही, विशेषकर धराली (गंगोत्री मार्ग) को भारी नुकसान पहुंचा था।

हालांकि, बरसात थमने के बाद प्रशासन और राहत दलों ने युद्धस्तर पर कार्य कर मार्गों को दुरुस्त किया और यात्रा को पुनः सुचारू रूप से शुरू किया गया। फिलहाल सभी धामों में यात्रा सुचारू है और प्रशासन श्रद्धालुओं को मौसम की स्थिति को देखते हुए यात्रा करने की सलाह दे रहा है।


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वैष्णो देवी: रोपवे और बैटरी कार सेवाएँ सुचारु, मौसम पर निर्भर हेलिकॉप्टर सेवा

बदलते मौसम के बीच मां वैष्णो देवी की यात्रा सुचारु

पल-पल बदलते मौसम के बावजूद मां वैष्णो देवी की यात्रा पूरी तरह से सुचारु रूप से जारी है। श्रद्धालु पंजीकरण करवाकर आरएफआईडी यात्रा कार्ड प्राप्त करने के बाद परिजनों संग भवन की ओर रवाना हो रहे हैं।

यात्रियों को घोड़ा, पिट्ठू, पालकी, बैटरी कार और रोपवे जैसी सुविधाएँ लगातार उपलब्ध हैं। वहीं, इच्छुक श्रद्धालु हेलिकॉप्टर सेवा का भी लाभ उठा रहे हैं।

हालांकि दोपहर तक मौसम साफ रहा, लेकिन उसके बाद अचानक आसमान में काले बादल छा गए और त्रिकूट पर्वत पर ठंडी हवाएँ चलने लगीं। मौजूदा हालात को देखते हुए संभावना है कि यात्रियों को बारिश का सामना करना पड़ सकता है।

श्राइन बोर्ड ने सभी मार्गों पर सहायता मित्र तैनात किए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो।

फिलहाल यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या में कमी दर्ज की जा रही है। इस वजह से भवन परिसर और मार्ग अपेक्षाकृत शांत हैं और श्रद्धालु बिना कठिनाई के दर्शन कर पा रहे हैं।

बीते 18 सितंबर को 2,798 श्रद्धालुओं ने मां वैष्णो देवी के चरणों में हाजिरी लगाई, जबकि 19 सितंबर की दोपहर 2 बजे तक लगभग 1,800 श्रद्धालु भवन की ओर रवाना हो चुके थे और कुछ श्रद्धालुओं का आना जारी है।


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