मंत्रिमंडल की पहली बैठक में मुफ्त राशन योजना को तीन महीने तक बढ़ाने का निर्णय

लखनऊ, 26 मार्च। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में शनिवार को मंत्रिमंडल की बैठक में कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई मुफ्त राशन योजना को तीन महीने तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया।

 

मार्च 2022 तक के लिए लागू की गई योजना अब जून तक जारी रहेगी। इसमें 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का प्रावधान है। इस योजना के तहत अगले तीन और माह तक खाद्यान्न योजना के तहत प्रदेश के 15 करोड़ लोगों को दाल, नमक, चीनी के साथ खाद्यान्न मिलता रहेगा। योजना मार्च 2022 में खत्म हो रही थी।

 

माना जा रहा है कि इस बार भाजपा की जीत में मुफ्त राशन की इस योजना का जबरदस्त प्रभाव रहा है। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के बाद आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार की पहली कैबिनेट बैठक शनिवार सुबह यहां लोकभवन में हुई।

 

मुख्यमंत्री ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रधानमंत्री ने देश के हर नागरिक के लिए ‘प्रधानमंत्री अन्न योजना’ प्रारंभ की थी। इस योजना के अन्तर्गत देश की 80 करोड़ जनता को इसका लाभ मिल रहा है।’’

 

उन्होंने कहा, ‘‘मार्च-अप्रैल 2020 से लेकर मार्च 2022 तक लगभग 15 महीनों तक इस योजना का लाभ लोगों को प्राप्त हुआ है। 15 करोड़ लोगों को उत्तर प्रदेश में इसका लाभ प्राप्त होता था। राज्य सरकार ने भी उत्तर प्रदेश के अंत्योदय के लाभार्थी और पात्र परिवारों सहित 15 करोड़ लाभार्थियों के लिए यह योजना अपनी ओर से अप्रैल 2020 से आरंभ की थी।’’

 

उन्होंने कहा कि योजना के अन्तर्गत राज्य की 15 करोड़ अंत्योदय जनता को 35 किलोग्राम खाद्यान्न और पात्र परिवारों को पांच-पांच किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त होता है। राज्य सरकार ने इसके साथ ही प्रत्येक परिवार को एक किलोग्राम दाल, एक किलोग्राम रिफाइंड तेल, एक किलोग्राम आयोडीनयुक्त नमक भी उपलब्ध कराया था। इसके साथ ही अंत्योदय परिवारों को राज्य सरकार ने एक किलोग्राम चीनी भी उपलब्ध करायी थी।

 

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘यह योजना मार्च 2022 तक थी। इसलिए मंत्रिमंडल ने शनिवार को निर्णय लिया कि अगले तीन महीनों तक प्रदेश के 15 करोड़ लोगों के लिए यह योजना जारी रहेगी। ‘डबल इंजन की सरकार’ पहले भी जनता के साथ खड़ी रही। महामारी के दौरान निशुल्क इलाज, निशुल्क टीका उपलब्ध कराया गया।’’ संवाददाता सम्मेलन में योगी आदित्यनाथ के साथ उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक तथा कैबिनेट मंत्री सुरेश कुमार खन्ना एवं स्वतंत्र देव सिंह भी मौजूद थे।

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खरीद के बाद 6-7 महीने के भीतर राशन दुकानों से ज्वार, रागी वितरित कर सकते राज्य

नई दिल्ली : केंद्र ने राज्य सरकारों को अब खरीद अवधि की समाप्ति से 6 और 7 महीने के भीतर क्रमश: ज्वार तथ रागी वितरित करने की अनुमति दी है। अबतक यह यह अवधि तीन महीने थी।


सरकार के इस प्रयास का मकसद राशन की दुकानों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मोटे अनाज की आपूर्ति को बढ़ावा देना है।


केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने एक सरकारी बयान में कहा कि भारत सरकार ने 21 मार्च 2014 और 26 दिसंबर 2014 के मोटे अनाज की खरीद, आवंटन, वितरण और निपटान के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।


मोटे अनाज की खरीद को वर्ष 2014 के दिशानिर्देशों द्वारा विनियमित किया जाता था, जिसके तहत राज्यों को केंद्रीय पूल के लिए एमएसपी पर किसानों से मोटा अनाज खरीदने की अनुमति दी गई थी। यह भारतीय खाद्य निगम के परामर्श से राज्यों द्वारा तैयार की गई विस्तृत खरीद योजना पर भारत सरकार के पूर्व अनुमोदन के अधीन था।


वर्ष 2014 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, खरीद अवधि समाप्त होने के तीन महीने के भीतर पूरी की पूरी मात्रा का वितरण किया जाना होता था।


अंशधारकों के साथ चर्चा के आधार पर केंद्र ने वर्ष 2014 के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।


खाद्य मंत्रालय ने कहा, ''ज्वार और रागी की वितरण अवधि को पहले के 3 महीने से बढ़ाकर क्रमशः 6 और 7 महीने कर दिया गया है।''


इससे ज्वार और रागी की खरीद और खपत में वृद्धि होगी क्योंकि राज्य के पास इन वस्तुओं को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) / अन्य कल्याणकारी योजनाओं में वितरित करने के लिए अधिक समय होगा।


खरीद बढ़ने से इन फसलों की खरीद से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ेगी।


मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल नहीं बनाने वाले, लसीलापन मुक्त (ग्लूटन मुक्त) होते हैं और इनमें बेहतर आहार गुण होते हैं। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण से निपटने और मोटे अनाज के सेवन से प्रतिरक्षा तथा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।




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अनाज, सब्जियों के दाम घटने से अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.3 प्रतिशत पर

नई दिल्ली :  अनाज और सब्जियों सहित खाद्य उत्पादों के दाम घटने से खुदरा मुद्रास्फीति अगस्त में मामूली घटकर 5.3 प्रतिशत रह गई। सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। हालांकि, खाद्य तेल के दाम में इस दौरान वृद्धि दर्ज की गई।


यह लगातार तीसरा महीना है जबकि खुदरा मुद्रास्फीति नीचे आई है और रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर के दायरे में बनी हुई है।


उपभोक्ता मूल्यू सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इससे पिछले महीने जुलाई में 5.59 प्रतिशत थी। वहीं एक साल पहले अगस्त में यह 6.69 प्रतिशत पर थी।


राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति अगस्त में 3.11 प्रतिशत रही जो कि इससे पिछले महीने जुलाई में 3.96 प्रतिशत थी वहीं अगस्त, 2020 में यह 9.05 प्रतिशत के उच्चस्तर पर थी।


खुदरा मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 6.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी। अप्रैल में यह 4.23 प्रतिशत थी। उसके बाद से यह लगातार नीचे आ रही है। जून में खुदरा मुद्रास्फीति 6.26 प्रतिशत तथा जुलाई में 5.59 प्रतिशत रही।


रिजर्व बैंक ने अगस्त में अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखा था। केंद्रीय बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पर निर्णय के लिए मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पर गौर करता है।


सरकार ने केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है।


एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों और अनाज एवं उत्पादों के दाम में क्रमश: 11.68 प्रतिशत और 1.42 प्रतिशत घट गई। लेकिन 'तेल एवं वसा' खंड में मूल्यवृद्धि एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 33 प्रतिशत रही।


त्योहारी मौसम के दौरान खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार ने हाल में पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेलों पर मूल सीमा शुल्क घटा दिया है। उद्योग का मानना है कि इससे तेलों के खुदरा दाम चार से पांच रुपये प्रति लीटर घट जाएंगे।


हालांकि, उपभोक्ताओं की जेब पर 'ईंधन और प्रकाश' खंड अब भी भारी बना हुआ है। इस खंड में मुद्रास्फीति 12.95 प्रतिशत रही।


डीबीएस सिंगापुर की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट अनुकूल आधार प्रभाव तथा खाद्य वस्तुओं के दाम घटने की वजह से आई है। उन्होंने कहा कि तेल एवं वसा को छोड़कर अन्य उप खंडों की मुद्रास्फीति घटी है।


रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के 5.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि दूसरी तिमाही में यह 5.9 प्रतिशत, तीसरी में 5.3 प्रतिशत और चौथी में 5.8 प्रतिशत रहेगी। वहीं, अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया।


कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ उपाध्यक्ष उपासना भारद्वाज ने कहा कि मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के अनुमान की तुलना में अधिक अनुकूल और कम रहेगी।


उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के नरम रहने से नीति निर्माताओं को राहत मिलेगी और नीति के सामान्यीकरण की ओर से धीमी रफ्तार से चलने के लिए ज्यादा गुंजाइश होगी।









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मंडी में 14 जुलाई को होगा दुकानों का आवंटन, 55 लोगों ने किए आवेदन

नोएडा : फेज टू सब्जी-फल मंडी में बनी 122 दुकानों का आवंटन 14 जुलाई को होगा। हालांकि, अभी तक 55 लोगों ने ही आवेदन किए है, जबकि 63 लोगों ने आवेदन फॉर्म खरीदा था।


मंडी विस्तार के लिए शासन की ओर से मंडी में 114 नई दुकानें बनाई हैं। आठ पुरानी दुकानों भी हैं। कुल मिलाकर मंडी समिति ने 122 दुकानों के आवंटन के लिए 30 जुलाई तक लोगों से आवेदन मांगे थे। इस दौरान 63 लोगों ने दुकान आवंटन के लिए फॉर्म की खरीदारी की, इनमें से 55 लोगों ने ही अभी तक आवेदन किए हैं।


14 जुलाई को होगा दुकानों का आवंटन


मंडी समिति की ओर से आगामी 14 जुलाई को दुकानों को आवंटन किया जाएगा। आवंटन ई-टेंडरिंग के माध्यम से किया जाएगा। मंडी सचिव संतोष कुमार यादव ने बताया कि दुकानों के आवंटन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। निर्धारित समय में दुकानों का आवंटन किया जाएगा, जो दुकानें आवंटन के बाद बचेंगी, उनका आवंटन दूसरे चरण में किया जाएगा।


एक साल देरी से हो रहा आवंटन


मंडी समिति में दुकानों का आवंटन 2020 जून तक होना था, लेकिन कोरोना संक्रमण के प्रकोप और लॉकडाउन के चलते दुकानों का निर्माण कार्य तय समय में पूरा नहीं हो सका। इसके बाद दुकानों का निर्माण फरवरी 2021 में पूरा हुआ। दोबारा लॉकडाउन लगाने से आवंटन मे देरी हुई।






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एमएसपी बढ़ाकर किसानों को दी बड़ी राहत

केंद्र सरकार ने किसानों के हित में बड़ा फैसला लेते हुए फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का ऐलान कर दिया है। खरीफ की प्रमुख फसल धान पर एमएसपी 72 रुपए बढ़ाकर 1940 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया है। इसी तरह दलहन फसलों को बढ़ावा देने की दृष्टि से उड़द एवं अरहर का समर्थन मूल्य 300 और तिल का 452 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया है। इससे दाल व खाद्य तेल का आयात घटेगा और देश दाल उत्पादन में आत्मनिर्भता की ओर बढ़ेगा। मूंगफली, सूरजमुखी और सोयाबीन पर भी क्रमशः 275, 130 और 70 रुपए बढ़ाया है। मोटे अनाज ज्वार पर 118, मक्का पर 251, बाजरा पर 100 और रागी पर 82 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाए दिए हैं।


साफ है, पंजाब में चल रहे किसान आन्दोलन को जवाब देने के लिए एमएसपी दरें 50 से 62 फीसदी तक बढ़ाई गई हैं। इसीलिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्षी दलों व कृषि कानून विरोधी आन्दोलनकारियों को आगाह करते हुए कहा है कि एमएसपी पहले भी था, अब भी है और आगे भी रहेगा। किसानों के हित में आगे भी एमएसपी में वृद्धि की जाती रहेगी। किसान आन्दोलन पर इसका कितना असर पड़ता है, यह कहना मुश्किल है, लेकिन मोदी सरकार ने आन्दोलन के विस्तार पर एमएसपी के औजार से अंकुश जरूर लगा दिया है।

यह बढ़ोतरी व्यापक रूप से देशहित में है। क्योंकि इस घोषणा के सामने आने के साथ ही शेयर बाजार में उछाल आया है। दरअसल किसान की आमदनी बढ़ने से चौतरफा लाभ होता है। फसलों के प्रसंस्करण से लेकर कृषि उपकरण और खाद-बीज के कारखानों की गतिशीलता किसान की आय पर ही निर्भर है। मंडियों में आढ़त, अनाज के भरा-भर्ती और यातायात से जुड़े व्यापरियों को भी जीवनदान किसान की उपज से ही मिलता है। कई फसलों के मूल्यों में ये वृद्धियां 50 फीसदी से भी अधिक हैं। तूअर, मूंग, और उड़द में वृद्धि करने से भविष्य में सरकार को दालें आयात करने से निजात मिल सकती है। इन फसलों की पैदावार में समय ज्यादा लगने के कारण किसान इस उपज से पीछा छुड़ाने में लग गया था। नतीजतन सरकार को अफ्रीकी देशों से बड़ी मात्रा में दालों की आयात के लिए मजबूर होना पड़ रहा था।


पिछले डेढ़ साल से चल रहे कोरोना संकट में आर्थिक उदारीकरण अर्थात पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की पोल खुल गई और देश आर्थिक व भोजन के संकट से मुक्त है तो उसमें केवल खेती-किसानी का सबसे बड़ा योगदान है। भारत सरकार ने इस स्थिति को समझ लिया है कि बड़े उद्योगों से जुड़े व्यवसाय और व्यापार जबरदस्त मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। वहीं किसानों ने 2019-20 में रिकॉर्ड 29.19 करोड़ टन अनाज पैदा करके देश की ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था को तो तरल बनाए ही रखा है, साथ ही पूरी आबादी का पेट भरने का इंतजाम भी किया है। 2019-2020 में अनाज का उत्पादन आबादी की जरूरत से 7 करोड़ टन ज्यादा हुआ था। 2020-2021 में भी 350 मिलियन टन आनाज पैदा करके किसान ने देश की अर्थव्यवस्था में ठोस योगदान दिया है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और किसान को इसलिए भी बढ़ावा देने की जरूरत है, क्योंकि देश से किए जाने वाले कुल निर्यात में 70 प्रतिशत भागीदारी केवल कृषि उत्पादों की है। यानि सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा कृषि उपज निर्यात करके मिलती है। सकल घरेलू उत्पाद दर में भी कृषि का 45 प्रतिशत योगदान है।


भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी सहित थॉमस पिकेटी दावा करते रहे हैं कि कोरोना से ठप हुई ग्रामीण भारत पर जबरदस्त अर्थ-संकट गहराएगा। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2017-18 के निष्कर्ष ने भी कहा था कि 2012 से 2018 के बीच एक ग्रामीण का खर्च 1430 रुपए से घटकर 1304 रुपए हो गया है। जबकि इसी समय में एक शहरी का खर्च 2630 रुपए से बढ़कर 3155 रुपए हुआ है। अर्थशास्त्र के सामान्य सिद्धांत में यही परिभाषित है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा में गरीब आदमी को ही सबसे ज्यादा संकट झेलना होता है। लेकिन इस कोरोना संकट में पहली बार देखने में आया है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के पैरोकार रहे बड़े और मध्यम उद्योगों में काम करने वाले कर्मचारी भी न केवल आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, बल्कि उनके समक्ष रोजगार का संकट भी पैदा हुआ है। लेकिन बीते दो कोरोना कालों में खेती-किसानी से जुड़ी उपलब्धियों का मूल्यांकन करें तो पता चलता है कि देश को कोरोना संकट से केवल किसान और पशु-पालकों ने ही उबारे रखने का काम किया है। फसल, दूध और मछली पालकों का ही करिश्मा है कि पूरे देश में कहीं भी खाद्यान्न संकट पैदा नहीं हुआ। यही नहीं जो प्रवासी मजदूर ग्रामों की ओर लौटे उनके लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था का काम भी गांव-गांव किसान व ग्रामीणों ने ही किया। वे ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उनके घरों में अन्न के भंडार थे। इस दौरान यदि सरकारी महकमों चिकित्सा, पुलिस, बैंक और राजस्व को छोड़ दिया जाए तो 70 फीसदी सरकारी कर्मचारी न केवल घरों में बंद रहे, बल्कि मजदूरों के प्रति उनका सेवाभाव भी देखने में नहीं आया। यदि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राहत कोषों का आकलन करें तो पाएंगे कि इनका आर्थिक योगदान ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर रहा है। सरकारी कर्मचारियों की इस बेरुखी से भी जरूरी हो जाता है कि अब अनुत्पादक लोगों की बजाय, उत्पादक समूहों को प्रोत्साहित किया जाए ?


ऐसे में अन्नदाता की आमदनी सुरक्षित करने की जरूरत है। क्योंकि समय पर किसान द्वारा उपजाई फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण अन्नदाता के सामने कई तरह के संकट मुंह बाए खड़े हो जाते हैं। ऐसे में वह न तो बैंकों से लिया कर्ज समय पर चुका पाते हैं और न ही अगली फसल के लिए वाजिब तैयारी कर पाते हैं। बच्चों की पढ़ाई और शादी भी प्रभावित होते हैं। यदि अन्नदाता के परिवार में कोई सदस्य गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो उसका इलाज कराना भी मुश्किल होता है। इन वजहों से उबर नहीं पाने के कारण किसान आत्मघाती कदम उठाने तक को मजबूर हो जाते हैं। यही वजह है कि पिछले तीन दशक से प्रत्येक 37 मिनट में एक किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है। इसी कालखंड में प्रतिदिन करीब 2052 किसान खेती छोड़कर शहरों में मजदूरी करने चले जाते हैं। कोरोना ने अब हालात को पलट दिया है। इसलिए खेती-किसानी से जुड़े लोगों की गांव में रहते हुए ही आजीविका कैसे चले, इसके पुख्ता इंतजाम करने की जरूरत है।


नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि की थी, इसी क्रम में 'प्रधानमंत्री अन्नदाता आय सरंक्षण नीति' लाई गई थी। तब इस योजना को अमल में लाने के लिए अंतरिम बजट में 75,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। इसके तहत दो हेक्टेयर या पांच एकड़ से कम भूमि वाले किसानों को हर साल तीन किश्तों में कुल 6000 रुपए देना शुरू किए गए थे। इसके दायरे में 14.5 करोड़ किसानों को लाभ मिल रहा है। जाहिर है, किसान की आमदनी दोगुनी करने का यह बेहतर उपाय है। यदि फसल बीमा का समय पर भुगतान, आसान कृषि ऋण और बिजली की उपलब्धता तय कर दी जाती है तो भविष्य में किसान की आमदनी दूनी होने में कोई संदेह नहीं रह जाएगा। ऐसा होता है तो किसान और किसानी से जुड़े मजदूरों का पलायन रुकेगा और खेती 70 फीसदी ग्रामीण आबादी के रोजगार का जरिया बनी रहेगी। खेती घाटे का सौदा न रहे इस दृष्टि से कृषि उपकरण, खाद, बीज और कीटनाशकों के मूल्य पर नियंत्रण भी जरूरी है।


बीते कुछ समय से पूरे देश में ग्रामों से मांग की कमी दर्ज की गई है। निःसंदेह गांव और कृषि क्षेत्र से जुड़ी जिन योजनाओं की श्रृंखला को जमीन पर उतारने के लिए 14.3 लाख करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया गया है, उसका उपयोग अब सार्थक रूप में होता है तो किसान की आय सही मायनों में 2022 तक दोगुनी हो पाएगी। इस हेतु अभी फसलों का उत्पादन बढ़ाने, कृषि की लागत कम करने, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि आधारित वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने की भी जरूरत है। दरअसल बीते कुछ सालों में कृषि निर्यात में सालाना करीब 10 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं कृषि आयात 10 अरब डॉलर से अधिक बढ़ गया है। इस दिशा में यदि नीतिगत उपाय करके संतुलन बिठा लिया जाता है, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश की धुरी बन सकती है।


केंद्र सरकार फिलहाल एमएसपी तय करने के तरीके में 'ए-2' फॉमूर्ला अपनाती है। यानी फसल उपजाने की लागत में केवल बीज, खाद, सिंचाई और परिवार के श्रम का मूल्य जोड़ा जाता है। इसके अनुसार जो लागत बैठती है, उसमें 50 फीसदी धनराशि जोड़कर समर्थन मूल्य तय कर दिया जाता है। जबकि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश है कि इस उत्पादन लागत में कृषि भूमि का किराया भी जोड़ा जाए। इसके बाद सरकार द्वारा दी जाने वाली 50 प्रतिशत धनराशि जोड़कर समर्थन मुल्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए। फसल का अंतरराष्ट्रीय भाव तय करने का मानक भी यही है। यदि भविष्य में ये मानक तय कर दिए जाते हैं तो किसान की खुशहाली और बढ़ जाएगी। नतीजतन कृषि कानून विरोधी आन्दोलनों का भी कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।


अब सरकार खेती-किसानी, डेयरी और मछली पालन से जुड़े लोगों के प्रति उदार दिखाई दे रही है, इससे लगता है कि भविष्य में किसानों को अपनी भूमि का किराया भी मिलने लग जाएगा। इन वृद्धियों से कृषि क्षेत्र की विकास दर में भी वृद्धि होने की उम्मीद बढ़ेगी। वैसे भी यदि देश की सकल घरेलू उत्पाद दर को दहाई अंक में ले जाना है तो कृषि क्षेत्र की विकास दर 4 प्रतिशत होनी चाहिए।


-प्रमोद भार्गव-


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मोदी सरकार ने फसलों का सरकारी खरीद का रिकार्ड तोड़ समर्थन मूल्य बढ़ाया : तरुण चुग

चंडीगढ़/जालंधर : भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री तरूण चुघ ने बयान जारी कर कहा की प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अगामी रबी फसलों की एम.एस.पी. में पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष बढौतरी कर कृषि अध्यादेशों का विरोध कर रहे राजनीति दलों को करारा झटका देते हुये देश के सभी किसानों विशेष रूप से पंजाब व हरियाणा के किसानों को अपील करते हुये कहा की कांग्रेस पार्टी वामपंथी दलों व आम आदमी पार्टी के दुश्प्रचार के बेहकावे में ना आकर नए कृषि कानूनों के तहत अपनी फसल को देश विदेश में कही भी बेचने के अधिकार को अपनी आय वृद्वि का साधन बनाए।


चुघ ने अगामी सीजन की फसलों के एम.एस.पी के दामों में अभूतपूर्व वृद्वि का स्वागत करते हुए कहा की मोदी सरकार ने गेहूं की एम.एस.पी में 2013-14 कांग्रेस के समय से 575 रुपये क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 1975 कर दिया है, धान (चावल) की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 558 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 1868 कर दिया है, ज्वार की एम.एस.पी में 2013-14 कांग्रेस के समय से 1120 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 2620 कर दिया है, बाजरे की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 900 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 2150 कर दिया है, अरहर की एम.एस.पी में 2013-14 कांग्रेस के समय से 1700 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 6000 कर दिया है, मूंग की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 2696 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 7196 कर दिया है, उड़द की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 1700 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 6000 कर दिया है, कपास की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 1815 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 5515 कर दिया है, मूंगफली की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 1275 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 5275 कर दिया है, सूरजमुखी के बीज की एम.एस.पी 2013-14 कांग्रेस के समय से 2185 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2020-21 में 5885 रुपये प्रति क्विंटल एम.एस.पी बढाने की घोषणा करके अपने आप को तथाकथित किसान हितैषी बताने वाले पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह, कांग्रेस पंजाब अध्यक्ष सुनील जाखड, आम आदमी पार्टी के प्रधान भगवंत मान, विपक्षी दल के नाते हरपाल चीमा अकाली दाल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल, पूर्व कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल को अगाह करते हुए कहा की पंजाब के भोले भाले अनदाता किसानों को बरगलाने से बाज आए अन्यथा पंजाब के किसान अगामी विधानसभा चुनावों में दौहरा चरित्र अपनाने वाले राजनीतिक दलों का राजनितिक सफाया करने में गुरेज नही करेंगें।





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कोविड गाइडलाइन्स : लुधियाना की नई फल-सब्जी मंडी में मचा हड़कंप, पुलिस की रेड; तीन आढ़तियाें के खिलाफ केस

लुधियाना :  COVID Guideline Violation in Ludhiana: महानगर में लाेग काेविड नियमाें का उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पुलिस की सख्ती भी अब बेअसर साबित हाेने लगी है। लाॅकडाउन में सामान बेचना आढ़तियों को मंहगा पड़ने लगा है। चेयरमैन दर्शन लाल बवेजा के मना करने पर भी आढ़तियों ने सामान बेचना बंद नहीं किया जिससे अब रात में सामान बेचने वाले आढ़तियों पर पुलिस रेड होने लगी है।


आढ़तियों को थाने में ही दे दी जमानत

शुक्रवार-शनिवार देर रात मंडी में रेड कर तीन आढ़तियों को पुलिस काबू कर थाने ले गई। तीनों आढ़तियों पर रात में सामान बाहर बेचने के आरोप में केस दर्ज कर लिए गया। हालांकि तीनों आरोपित आढ़तियों को थाने में ही जमानत दे दी गई। पुलिस के मुताबिक नई फल-सब्जी मंडी में दीपक चुघ फ्रूट कंपनी एंड संस शैड नंबर 19 की ओर से शनिवार रात 12 बजे जालंधर बाइपास स्थित फ्रूड मंडी में कारोबार किया जा रहा था।


ग्राहक व दुकानदार पर कोविड-19 की उलंघना का मामला दर्ज

इस दौरान ग्राहक राजेश कुमार व राजेश शाह को फ्रूट बेच रहा था। सूचना मिलने के बाद मौके पर पहुंची थाना जोधेवाल बस्ती की पुलिस ने ग्राहक व दुकानदार पर कोविड-19 की उलंघना का मामला दर्ज कर दिया है। आढ़तियों पर इस तरह केस दर्ज होने से सभी आढ़ती सकते में है और अब रात में कोई कारोबार नहीं कर रहे है। पुलिस का कहना है कि काेविड नियमाें का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। नियम फालाे न करने वालाें के खिलाफ सख्ती की जाएगी।


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विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारी इस पुस्तक का अध्ययन कर समिति कार्यो को सुगमता और पारदर्शिता से सम्पादित कर सकेगें

 

उत्तर प्रदेश लखनऊ: प्रदेश की सहकारी गन्ना विकास समितियों हेतु निर्गत महत्वपूर्ण आदेशों के संकलन की पुस्तक का ऑन-लाईन विमोचन कार्यक्रम आज गन्ना आयुक्त कार्यालय के सभागार मे सम्पन्न हुआ। विमोचन कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। पुस्तक का विमोचन चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री संजय आर. भूसरेड्डी के कर-कमलों द्वारा किया गया।

   सहकारी गन्ना विकास समितियों हेतु निर्गत महत्वपूर्ण आदेशों के संकलन की पुस्तक” की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त गन्ना आयुक्त (समिति) डा. वी.बी. सिंहने बताया कि 745 पृष्ठ वाली इस पुस्तक मे वर्ष 1955 से 2021 तक के लगभग 200 महत्वपूर्ण विभागीय आदशों का संकलन किया गया है। उन्होने बताया कि इस पुस्तक को तैयार करना अत्यन्त दुरूह कार्य थापरन्तु विभाग के अपर मुख्य सचिवश्री भूसरेड्डी के कुशल निर्देशन एवं प्रेरणा से इस कार्य को सम्पन्न किया जा सका।

 

  सिंह ने यह भी बताया कि गन्ना विकास विभाग नित नये कीर्तिमान रच रहा है और इन्हीं कीर्तिमानों मे एक और अध्याय के रूप मे यह पुस्तक ज्ञान का दीपक साबित होगी। उन्होने यह भी कहा कि इस सकंलन के माध्यम से कार्मिकों से होने वाली वित्तीय अनियमितताओं एवं त्रुटियों पर लगाम लगेगी। श्री सिंह ने विभाग के समस्त कार्मिकों से अपील की कि वह इस संकलन को सहेज कर रखें तथा अध्ययन कर विभाग केे हितधारक पक्षों को सहूलियत पहुचायें।

 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री संजय आर. भूसरेड्डी द्वारा अपने उद्बोधन मे सर्वप्रथम कोराना महामारी से दिवंगत हुए कार्मिकों को श्रद्धांजलि दी गयी तथा विभागीय अधिकारियो और कार्मिकों से अपील की गयी कि वह कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए शासकीय कार्यो का सम्पादन करें। ऑनलाइन पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के अवसर पर समस्त विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्होने इस पुस्तक को कार्मिकों की दिन-रात की मेहनत का प्रतिफल बताया। उन्होनें कहा कि विभागीय अधिकारियो और कार्मिकों द्वारा समिति प्रापर्टी प्रबन्धन हेतु दिन-रात मेहनत कर सहकारी गन्ना समितियों का पुनरुद्धार किया गया है। इस सम्पत्ति की रक्षा और अपने कर्तव्यों का निर्वहन एक ट्रस्टी के रूप मे करेंतथा अपनी संस्था के प्रति आदर का भाव विकसित करे। 

 भूसरेड्डी ने पुस्तक के बारे मे कहा कि कोई भी संस्था अपने उद्देश्यों की पूर्ति तभी कर सकती हैजब उस संस्था का संचालन करने वाले प्रतिनिधि अथवा अधिकारी एवं कर्मचारी निर्धारित व्यवस्थाअधिनियमनियमोंशासनादशों एवं उसके संचालन हेतु उच्च स्तर से प्रसारित महत्वपूर्ण आदेशों एवं निर्देशों से भिज्ञ रहंे। उन्होने कहा कि सहकारी गन्ना समितियों के कार्यो को सुगमता से सम्पादित करने के लिए यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी। उन्होने बताया कि यह पुस्तक शीघ्र ही सभी विभागीय कार्यालयों को निःशुल्क उपलब्ध करा दी जायेगी।

पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के समापन के समय अपर गन्ना आयुक्त (मुख्यालय) वाई.एस.मलिकद्वारा अपर मुख्य सचिव महोदय को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आभार व्यक्त किया गया। मलिक ने कहा कि इस पुस्तक से शासकीय कार्यो के प्रति विभागीय अधिकारियो एवं कार्मिकों की समझ विकसित होगीजिससे वह पारदर्षिता के साथ त्रुुटिहीन कार्य कर सकेगें। मलिक ने कहा कि यह पुस्तक समिति खण्ड के अधिकारियों और कार्मिकों की लगन एवं निष्ठा तथा दिन-रात की गई मेहनत का प्रतिफल है।

विमोचन कार्यक्रम मे मुख्यालय के अधिकारियों के साथ-साथ विभाग की सभी सह-संस्थाओं के प्रमुखों एवं सभी क्षेत्रीय अधिकारियों द्वारा ऑनलाइन प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम स्थल पर मुख्यालय के सभी अधिकारियों द्वारा कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

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शनिवार तक 6 लाख 36 हजार 83 मीट्रिक टन गेहूं की हुई आवक

कैथल, (वेबवार्ता)। उपायुक्त सुजान सिंह ने बताया कि जिला में विभिन्न एजैंसियों द्वारा शनिवार तक 6 लाख 36 हजार 83 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद गई है। उपायुक्त ने बताया कि जिला में गेहूं की कुल आवक में से 2 लाख 21 हजार 853 मीट्रिक टन गेहूं खाद्य एंव आपूर्ति विभाग द्वारा, 2 लाख 64 हजार 740 हैफेड द्वारा, 49 हजार 877 मीट्रिक टन भारतीय खाद्य निगम द्वारा, 71 मीट्रिक टन हैफेड कॉमर्सियल तथा 99 हजार 520 मीट्रिक टन गेहूं हरियाणा वेयरहाउसिंग कोर्पोरेशन द्वारा खरीदा गया है। उपायुक्त ने किसानों का आह्वान किया है कि किसान व आढ़ती जारी हिदायतों व सावधानियों की पालना करते हुए स्वयं सुरक्षित रहें तथा दूसरों को भी सुरक्षित करने का कार्य करें। किसान गेहूं की फसल को सुखाकर व साफ करके मंडियों में लाएं, ताकि उनकी फसल की बिक्री में कोई परेशानी न हो। उन्होंने कहा है कि किसान गेहूं की फसल की कटाई के बाद खेत में खड़े फसल अवशेषों को आग न लगाएं। ऐसा करना दंडनीय अपराध है तथा ऐसा करने से खेतों में खड़ी गेहूं की फसल के साथ-साथ जानमाल का नुकसान होने का अंदेशा बना रहता है। फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर होती है तथा पशुओं के लिए चारे की कमी होती है। ...

इंदौर में चना, मसूर, मूंग, तुअर के भाव में वृद्धि

इंदौर, (वेबवार्ता)। स्थानीय संयोगितागंज अनाज मंडी में शुक्रवार को चना कांटा 125 रुपये, मसूर 100 रुपये, मूंग 100 रुपये एवं तुअर (अरहर) के भाव में 100 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई। आज चना दाल 100 रुपये, मसूर की दाल 100 रुपये, मूंग दाल 100 रुपये, मूंग मोगर 100 रुपये व तुअर दाल 100 रुपये प्रति क्विंटल महंगी बिकी। दलहन चना (कांटा) 5350 से 5375, चना (देसी) 5200 से 5250, मसूर 6050 से 6100, तुअर (अरहर) निमाड़ी 6300 से 7000, तुअर सफेद (महाराष्ट्र) 7150 से 7200, तुअर (कर्नाटक) 7400 से 7500, मूंग 7500 से 7600, मूंग हल्की 6000 से 6800, उड़द 7300 से 7500, हल्की 6000 से 6700 रुपये प्रति क्विंटल। दाल तुअर (अरहर) दाल सवा नंबर 9400 से 9700, तुअर दाल फूल 9800 से 9900, तुअर दाल बोल्ड 10100 से 10300, नई तुअर दाल 10400 से 10700, चना दाल 6700 से 7200, मसूर दाल 6850 से 7150, मूंग दाल 9000 से 9300, मूंग मोगर 9400 से 10000, उड़द दाल 8500 से 8800, उड़द मोगर 10000 से 10800 रुपये प्रति क्विंटल। चावल बासमती (921) 9000 से 9500, तिबार 7500 से 8000, दुबार 6500 से 7000, मिनी दुबार 6000 से 6500, मोगरा 3500 से 5500, बासमती सैला 5500 से 7000, कालीमूंछ 5000 से 7000, राजभोग 5900 से 6000, दूबराज 3500 से 4000, परमल 2500 से 2700, हंसा सैला 2500 से 2600, हंसा सफेद 2300 से 2400, पोहा 3200 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल। ...